जिनके आशियाने जल गए, उनके पास जमा-पूंजी के नाम पर अब जले हुए नोट ही बाकी रह गए https://ift.tt/2xhTVJN

दिल्ली के उन्हीं इलाकों से रिपोर्ट जहां 53 जानें गई थीं. उत्तर पूर्वी दिल्ली का भजनपुरा चौक। आज से ठीक एक महीना पहले यह इलाका दिल्ली में हुए दंगों की भयानक आग में झुलस रहा था। ऐसी आग जो पचास से ज्यादा लोगों की जिंदगी लील गई और सैकड़ों परिवारों को बेघर कर गई। यह आग भले ही अब बुझ चुकी है, लेकिन एक महीना बीत जाने के बाद भी इसकी कालिख के गाढ़े निशान आसानी से देखे जा सकते हैं।

भजनपुरा चौक के बीचों-बीच स्थित चांद बाबा की मजार को दंगाइयों ने बीती 24 फरवरी को आग के हवाले कर दिया था। इस मजार में श्रद्धालुओं का आना तो शुरू हो गया है, पर टूटी दीवारें, जली हुई छत और उजाड़ इमारत पहली नजर में ही अपनी आपबीती बयां कर रही हैं। इस मजार की मरम्मत का काम शुरू तो कर दिया गया था, लेकिन फिर उसे बीच में ही रुकवा दिया गया।

वक्फ बोर्ड की ओर से इस मजार की मरम्मत का काम हाजी अफजाल करवा रहे थे। वे बताते हैं- ‘इस मजार पर हिंदू-मुस्लिम सभी माथा टेकते हैं। इसकी मरम्मत के लिए भी सभी धर्मों के लोग आगे आए थे और हमने कारीगर लगवा कर मरम्मत शुरू भी कर दी थी। पर करीब पांच-छह दिन पहले पुलिस ने यहां आकर नए बने पिलर तोड़ दिए और उनमें लगे सरिए भी काट दिए। उस दिन से घबराकर फिलहाल मरम्मत रोक दी गई।’ इस मजार से कुछ दूरी पर सड़क के दूसरी तरफ ‘दिल्ली डीजल’ नाम का वह पेट्रोल पंप है, जिसे दंगाइयों ने राख कर दिया था। महेंद्र कुमार अग्रवाल का यह पेट्रोल पंप आज भी उसी हालत में है। इसका सिर्फ प्रदूषण जांच केंद्र दोबारा बनाकर शुरू कर दिया गया है। बाकी पूरा पेट्रोल पंप अब भी दंगों की गवाही दे रहा है।

मजार की मरम्मत करते कारीगर।

17 लाख का नुकसान हुआ, मुआवजे में करीब ढाई लाख मिले
इस पेट्रोल पंप से सटी हुई यमुना विहार की कई इमारतें भी दंगों के दौरान आग की चपेट में आ गई थीं। मुआवजा न मिलने के चलते इनमें से अधिकतर अब तक वैसी ही पड़ी हैं, लेकिन कुछ लोगों ने अपने खर्च से इमारतें ठीक करवाना शुरू कर दिया है। ‘कैप्टन कटोरा’ नाम के चर्चित रेस्टोरेंट के मालिक कमल शर्मा बताते हैं, ‘यमुना विहार में हमारे दो रेस्टारेंट थे और दोनों ही दंगों में जल गए। इसमें हमारा करीब 16-17 लाख रुपए का नुकसान हुआ। सरकार ने मुआवजे में कुल दो लाख 57 हजार रुपए दिए हैं। लेकिन फिर भी हमने अपनी जेब से पैसा लगाकर रेस्टोरेंट दोबारा बनवाए, ताकि काम-धंधा दोबारा शुरू किया जा सके, लेकिन वो भी नहीं हो सका। दंगों की मार से हम उभर पाते उससे पहले ही कोरोना ने दोबारा मार दिया।’

कमल शर्मा आगे कहते हैं, ‘ये रेस्टोरेंट हमने करीब 6-7 महीने पहले ही शुरू किए थे और इतने कम समय में ही अच्छी पहचान बना ली थी। लेकिन एक झटके में ही सब खत्म हो गया। हमने 25 लाख का कर्ज लेकर रेस्टोरेंट का काम शुरू किया था, जिसकी किस्त चुका रहे हैं। रेस्टोरेंट का किराया भी कोई कम नहीं है। एक का सवा लाख रु. तो दूसरे का 85 हजार रु. महीना। रेस्टोरेंट चले न चले किराया तो चुकाना ही है। यही सोचकर हमने इधर-उधर से पैसा जुटाया और रेस्टोरेंट फिर से तैयार किया, ताकि खर्चे निकल सकें। लेकिन अब कोरोना के चलते न जाने कब तक काम बंद रहेगा। जिन लोगों ने पार्टी के लिए एडवांस बुकिंग की थी, उन्हें भी एडवांस वापस करना होगा। पता नहीं आगे क्या और कैसे होने वाला है?’

40 लाख की संपत्ति जलकर खत्म हुई

कमल शर्मा जैसी ही स्थिति लगभग सभी दंगा प्रभावित व्यापारियों की बन पड़ी है। सजीर अहमद का ‘जोहान ऑटोमोबाइल’ हो या राजू अग्रवाल का ‘फेयर डील कार्स’, दंगों की आग में जलकर बहुत कुछ खाक हो गया और ये लोग करोड़ों रुपए के नुकसान में आ गए हैं। इस नुकसान की भारी मार उन दर्जनों लोगों पर भी पड़ी है जो इन शोरूम्स में नौकरी किया करते थे। ऐसे अधिकतर लोगों नौकरियां दंगों की भेंट चढ़ गई हैं।जोहान ऑटोमोबाइल का काम संभालने वाले राकेश शर्मा बताते हैं- ‘मैं 22 साल से सजीर अहमद साहब के साथ काम कर रहा हूं। इन दंगों में उनकी करीब 40 लाख की संपत्ति इसी शोरूम में जलकर खत्म हो गई। मुआवजे के नाम पर अब तक कुछ नहीं मिला है, इसलिए ये भी नहीं कह सकते कि शोरूम दोबारा कब तक तैयार कर पाएंगे। 80 हजार रु. महीना तो शोरूम का सिर्फ किराया ही जाता है।’

जोहान ऑटोमोबाइल, जिसमें40 लाख की संपत्ति जलकर खत्म हो गई।

भजनपुरा चौक पर ही मोहम्मद आजाद का ‘आजाद चिकन कॉर्नर’ भी हुआ करता था जो 24 फरवरी के दिन आगजनी की भेंट चढ़ गया। इससे बिल्कुल सटी गणेश कुमार की फलों की दुकान भी जला दी गई। आजाद और गणेश दोनों ही जल चुके आजाद चिकन कॉर्नर के बाहर कुर्सी डाले एक साथ बैठे मिले। गणेश बताते हैं- ‘आज से करीब 40 साल पहले आजाद भाई और मैंने लगभग साथ-साथ ही यहां अपना-अपना काम शुरू किया था। लगभग पूरी उम्र हम लोगों ने साथ गुजारी है और एक दूसरे के हर सुख-दुःख में साथ खड़े रहे हैं। लेकिन ये भाईचारा दंगाई कभी नहीं समझ सकते, जिन्होंने सिर्फ मजहब देखकर लोगों को निशाना बनाया।’

मोहम्मद और गणेश का भाईचारा
मोहम्मद आजाद और गणेश कुमार के भाईचारे का अंदाज़ इस बात से भी लगता है कि जब ये लोग दंगों की आपबीती सुनाते हैं तो खुद से ज्यादा एक-दूसरे के नुकसान का जिक्र करते मिलते हैं। मोहम्मद आजाद कहते हैं- ‘लाखों रुपए का माल गणेश भाई की दुकान में पड़ा था जो पहले लूटा गया और फिर जला दिया गया। ये कई लाख के घाटे में आ गए हैं और सरकार से अब तक कोई मदद नहीं मिली है। गणेश भाई की मां का दिल का इलाज चल रहा है, जिसमें हर महीने हजारों रुपए खर्च होते हैं। इस साल बेटी की शादी करने की भी सोच रहे थे। अब ये सब कैसे कर सकेंगे?’

मोहम्मद आजाद की ही तरह गणेश कुमार भी खुद से ज्यादा अपने पड़ोसी को हुए नुकसान का जिक्र करते हुए कहते हैं, ‘मुझे सिर्फ दुकान और व्यापार का नुकसान हुआ है, लेकिन आजाद भाई का तो पूरा घर भी जल गया है। उनका परिवार यहीं दुकान के ऊपर बने घर में रहा करता था। ये इमारत इस कदर जल चुकी है कि अब पूरी तोड़कर ही दोबारा बन सकेगी। आप ऊपर जाकर देखिए एक बार कैसे घर की छत बिल्कुल लटक चुकी है।’

गणेश कुमार। दंगों में इनकी दुकान जल गई।

जले हुए नोटों के बदले क्या बैंक नए नोट देगा?
अपना पूरी तरह से जल चुका घर दिखाते हुए मोहम्मद आजाद कहते हैं- ‘उस दिन जब दंगाई आए तो हमने छत से दूसरी तरफ कूद कर किसी तरह अपनी जान बचाई। घर खुला छोड़कर ही हम लोग जैसे-तैसे भाग गए थे। दंगाइयों ने नीचे दुकान का शटर तोड़कर पहले यहां लूट-पाट की और फिर आग लगाई। घर में जो भी जेवर और कैश था, सब लूट के ले गए। जो कैश उनके हाथ नहीं लगा वो आग की चपेट में आ गया।’ ये कहने के साथ आजाद डिब्बे में रखी जले हुए नोटों की गड्डियां दिखाते हैं और पूछते हैं, ‘इनमें कई नोट ऐसे हैं जिनके नम्बर जलने से बच गए हैं। क्या बैंक इस आधार पर हमें नए नोट दे देगा?’

जले हुए नोटों के साथ मोहम्मद आजाद का परिवार।

मोहम्मद आजाद की दुकान और घर को जले आज एक महीना पूरा हो गया है। सरकार की ओर से अब तक कोई वित्तीय मदद उन तक नहीं पहुंची है। ऐसे में इस दौरान उनके जरूरी खर्च कैसे पूरे हो रहे हैं? इस सवाल पर आजाद बताते हैं, ‘सरकारी मुआवजा अब तक नहीं मिला है लेकिन इस बीच कई लोग थोड़ी-थोड़ी मदद करते रहे हैं। राशन से लेकर अन्य कई तरह की मदद लोग पहुंचा रहे हैं। दंगों के कुछ ही दिनों बाद तो एक आदमी ने आकर धीरे-से मेरे हाथ में दस हजार रुपए रख दिए थे। मैं नहीं जानता वो कौन थे। नहीं पता हिंदू थे या मुसलमान। मैंने उनसे पूछा तो बस इतना कहा कि ‘हमें किसी को दिखाने के लिए आपकी मदद नहीं करनी है। आपको इस वक्त जरूरत है इसलिए आप ये रख लीजिए।’ वो दस हजार रुपए हम तीनों भाइयों ने बराबर बाट लिए।

भजनपुरा चौक से करावल नगर की ओर जाती सड़क पर एक तरफ मोहम्मद आजाद की दुकान है तो सड़क के दूसरी तरफ बालाजी स्वीट्स है। यह दुकान भी दंगाइयों के उन्माद का शिकार हुई थी। हालांकि इसमें आग नहीं लगी, लेकिन दंगाइयों इसका भी शटर तोड़कर इसमें लूटपाट और तोड़फोड़ की थी। नरेश अग्रवाल की इस दुकान की मरम्मत अब स्वयंसेवी संस्था ‘खालसा एड’ के द्वारा करवाई जा रही है।

‘खालसा एड’ से जुड़े लोगों ने दिल्ली दंगों में राहत पहुंचाने का प्रशंसनीय काम किया है। इस संस्था के लोग 26 फरवरी को ही दिल्ली के दंगा प्रभावित इलाकों में पहुंच चुके थे और उन्होंने लोगों को राशन से लेकर कपड़ों तक की मदद करना शुरू कर दिया था। दंगे शांत होने के बाद भी ये लोग लगातार यहां मौजूद रहे और कोरोना के चलते हुए जनता कर्फ्यू से एक दिन पहले तक खालसा एड यहां दर्जनों दुकानों की मरम्मत कर चुका था और फल-सब्जी बेचने वाले ऐसे 45 से ज्यादा ठेले वालों को नई रेहड़ी बनवा कर दे चुका था, जिनकी रेहड़ी दंगों में जल गई थी।

दंगा प्रभावित इलाकों में पहुंचे खालसा एड के लोग।

खालसा एड के मैनेजिंग डाइरेक्टर (एशिया) अमरप्रीत सिंह कहते हैं, ‘दंगों के वक्त मैं तो लंदन में था, लेकिन हमारी टीम यहां 26 तारीख को ही पहुंच चुकी थी। तब से टीम यहां लगातार बनी हुई है और हमारी कोशिश है कि हमसे जितना हो सके उतने लोगों तक हम मदद पहुंचा सकें। हमने दंगों में जल चुकी पूरी टायर मार्केट को भी बनवाने की पेशकश की थी, लेकिन वक्फ बोर्ड ने उसे बनवाने की जिम्मेदारी ले ली है। हम अब अलग-अलग इलाकों में लोगों की दुकानें बनवाने में मदद कर रहे हैं और उनकी मरम्मत, पुताई समेत बिजली की पूरी फिटिंग करवा के उन्हें दे रहे हैं।’

खालसा एड जैसी गैर-सरकारी संस्थाओं से इतर अगर सरकारी मदद पर नजर डालें तो ज्यादातर दंगा प्रभावित यही बताते मिलते हैं कि सरकारी मुआवजा अब तक भी उन्हें नहीं मिल पा रहा है। हालांकि, दिल्ली सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, 21 मार्च तक कुल 17 करोड़ 35 लाख 22 हजार रुपए बतौर मुआवज़ा बांट दिए गए हैं। इसमें आग की चपेट में आए करीब पांच सौ घरों, सात सौ दुकानों, 44 मृतकों और 238 घायलों को अब तक भुगतान किया जा चुका है।

दंगा प्रभावितों की मदद में लगे खालसा एड के मैनेजिंग डाइरेक्टर अमरप्रीत सिंह और उनके साथी।

इसके बावजूद भी सरकारी मुआवजे के आवंटन से प्रभावितों में रोष है तो उसके कुछ वाजिब कारण भी हैं। सरकारी आंकड़े में दावा है कि सरकार के पास अब तक झुग्गियों के जलने के सिर्फ आठ, ई-रिक्शा जलने के सिर्फ नौ और स्कूटी जलने के सिर्फ दो ही क्लैम आए हैं। जबकि इन दंगों में ई-रिक्शा और दोपहिया वाहन सैकड़ों की संख्या में जल कर राख हुए हैं।

कई इलाकों में अब तक मदद नहीं पहुंची
दंगों में जिन लोगों के घर जले हैं, उनमें से कई लोगों को 25 हजार का आंतरिक मुआवजा मिल चुका है। लेकिन कई इलाके ऐसे भी हैं जहां अब तक कोई भी मदद बिलकुल नहीं पहुंची है। शिव विहार फेज-3 ऐसा ही इलाका है। यहां स्थित गधा चौक के पास जिन लोगों के घरों को निशाना बनाकर लूटा और जलाया गया है, उनमें से किसी को भी अब तक सरकारी मुआवजे के नाम पर कुछ भी नहीं मिला है।

यहां रहने वाले इसरार अहमद बताते हैं, ‘इस इलाके में हमारे बहुत ही सीमित घर हैं। जब माहौल खराब हुआ तो हमारे पड़ोसियों ने ही हमें यहां से निकल जाने को कहा क्योंकि यहां जान का खतरा था। हम तो निकल गए, लेकिन हमारे घर दंगाइयों ने आकर पहले लूटे और फिर जला डाले।। सारी जिंदगी की कमाई लगाकर ये घर बनवाया था, अब दोबारा जाने कैसे इसे रहने लायक भी बना सकेंगे। फिलहाल तो हम लोग रिश्तेदारों के घर पर ही रह कर गुज़ारा कर रहे हैं।'

बरसों मेहनत करने और खून-पसीने से कमाई एक-एक पाई जोड़ने के बाद जिन लोगों ने अपने छोटे-मोटे आशियाने बनाए थे, वो एक ही रात में जलाकर दंगाइयों ने राख कर दिए। लिहाजा ये लोग अपने ही देश में शरणार्थियों की तरह दर-दर भटकने को मजबूर कर दिए गए। बेघर हो चुके ये लोग किस स्थिति में हैं और वापस क्यों नहीं लौट पा रहे, इसकी विस्तृत जानकारी इस रिपोर्ट की दूसरी कड़ी में।



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