ग़ज़ल "खफ़ा क्यों है?..."
मैं हिन्दुस्तान, फिर एक नई ग़ज़ल के साथ हाज़िर हूँ।
ग़ज़ल
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भला कुछ लोग मेरे मुस्कुराने से ख़फ़ा क्यूँ हैं।
सुहाने ख़्वाब आँखों में सजाने से ख़फ़ा क्यूँ हैं।
मुबारक हो उन्हें नफ़रत जिन्हें ये रास आती है,
मगर मेरी मुहब्बत के फ़साने से ख़फ़ा क्यूँ हैं।
ज़माना हो गया सोते, न जिनकी नींद खुल पाई,
मुहिम के साथ उन सबको जगाने से ख़फ़ा क्यूँ हैं।
किसी की धमकियाँ सुनकर, ज़रा भी डर नहीं लगता,
मुझे इक देश ताक़तवर बनाने से ख़फ़ा क्यूँ हैं।
सदा से घाव ही देता हुआ आया पड़ौसी जो,
उसे आँखें ज़रा टेढ़ी दिखाने से ख़फ़ा क्यूँ हैं।
कँटीली फाँस बनकर जो गड़ी थी देश के दिल में,
वही कश्मीर की धारा हटाने से ख़फ़ा क्यूँ हैं।
जिन्होंने ख़ानदानी माल जैसा देश को समझा,
सियासत दूसरे के हाथ जाने से ख़फ़ा क्यूँ हैं।
--बृज राज किशोर 'राहगीर'
ग़ज़ल
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भला कुछ लोग मेरे मुस्कुराने से ख़फ़ा क्यूँ हैं।
सुहाने ख़्वाब आँखों में सजाने से ख़फ़ा क्यूँ हैं।
मुबारक हो उन्हें नफ़रत जिन्हें ये रास आती है,
मगर मेरी मुहब्बत के फ़साने से ख़फ़ा क्यूँ हैं।
ज़माना हो गया सोते, न जिनकी नींद खुल पाई,
मुहिम के साथ उन सबको जगाने से ख़फ़ा क्यूँ हैं।
किसी की धमकियाँ सुनकर, ज़रा भी डर नहीं लगता,
मुझे इक देश ताक़तवर बनाने से ख़फ़ा क्यूँ हैं।
सदा से घाव ही देता हुआ आया पड़ौसी जो,
उसे आँखें ज़रा टेढ़ी दिखाने से ख़फ़ा क्यूँ हैं।
कँटीली फाँस बनकर जो गड़ी थी देश के दिल में,
वही कश्मीर की धारा हटाने से ख़फ़ा क्यूँ हैं।
जिन्होंने ख़ानदानी माल जैसा देश को समझा,
सियासत दूसरे के हाथ जाने से ख़फ़ा क्यूँ हैं।
--बृज राज किशोर 'राहगीर'
ग़ज़ल "खफ़ा क्यों है?..." अद्भुत रचना | Gyani Guide साहित्यक मंच
Reviewed by Gyani Guide
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12:26 PM
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