त्योहारो और उन पर बनने वाले भोजन मे छिपे है अनेको वैज्ञानिक कारण जानिये | Gyani Guide धर्म-संसार
हिन्दू धर्म के अंदर कोई भी चीज बेवजह नहीं है और ना ही ये अंधविश्वास है यदि थोड़ा सा अध्ययन हिन्दू धर्म के ग्रंथो का करें और इस धर्म के सभी क्रिया कलापो पर गंभीरता से विचार करें तो आप पाएंगे की इस धर्म के हर एक क्रिया कलाप के पीछे आडम्बर नहीं अपितु बहुत बड़े वैज्ञानिक कारण है जिन्हे यदि हम जान ले तो केवल इन त्योहारों के बल पर ही हम अपने आप को स्वस्थ भी रख पाएंगे तो आइये जानते हिन्दू धर्म के त्योहारों और इन पर बनने वाले भोजन के पीछे छिपे वैज्ञानिक कारणों को
दीपावली का वैज्ञानिक कारण
यूँ तो सभी जानते है की दीपावली क्यों मनाई जाती है भगवान् श्री राम इसी दिन वनवास के बाद अयोध्या वापस लौटे थे इसी दिन जैन धर्म मे भगवान् महावीर को निर्वाण प्राप्त हुआ था इसी दिन सिक्खों के छटे गुरु गुरु हरगोविंद सिंह जी जेल से रिहा हुए थे इसलिए सभी लोगो बड़े हर्षो उल्लास से इस महापर्व को मानते है लेकिन इस त्यौहार पर दिए जलाने के पीछे एक वैज्ञानिक कारण भी है आप जानते ही होंगे दीपावली का त्यौहार उस वक़्त पड़ता है जब ऋतु बदल रही होती है गर्मी से सर्दी का आगमन होता है कहने का मतलब उस समय तापमान नार्मल रहता है ना तो ज्यादा गर्मी होती है और ना ही सर्दी होती है और आप जानते होंगे की कोई भी कीटाणु ना तो ज्यादा गर्मी ने जीवित रह सकता है और न यही ज्यादा सर्दी मे उसे जीवित रहने के लिए माध्यम तापमान की जरुरत होती है हिन्दुओ के अधिकतर सभी त्यौहार ऐसे ही मौसम मे पड़ते है जिस समय ऋतु परिवर्तित हो रही होती है और तापमान माध्यम होता है ऐसे समय कीटाणु अपनी सुसुप्त अवस्था छोड़कर जाग्रत हो जाते है जो हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ज्यादा हानिकारक होते है इस समय हमारे त्यौहार और उन पर बना भोजन ही उन कीटाणुओं से हमारी रक्षा करता है आप सोच रहे होंगे की वो कैसे ? तो आइये जानते है
आप सभी जानते है की दीपावली पर हर घर मे तेल के दीपक के साथ एक घी का दीपक भी जलाया जाता है एक घी का दीपक एक लाख टन ऑक्सीजन पैदा करता है अब सोचिये की पुरे भारत की जनसंख्या का जब 80% तबका घी के दीपक जलाता है तो कितनी ऑक्सीजन उत्पन्न होती होंगी और ये ऑक्सीजन हमारे स्वास्थ्य के लिए कितनी लाभदायक है ये आप सभी जानते है
दीपावली का वैज्ञानिक महत्व भी है वर्षा ऋतु के समय पूरा वातावरण कीट-पतंगों से भर जाता है। साथ ही आस-पड़ौस के जंगल-झाडिय़ों की बहुलता हो जाती है। दीपावली के पहले साफ-सफाई करने से आस-पडौस साफ-सुथरा हो जाता है। घरों की पुताई करने से कई प्रकार के कीड़े-मकोड़े एवं मच्छर नष्ट हो जाते हैं तथा दीपावली के दिन दीपों की ज्वाला से बचे हुए कीड़े-मकोड़े मर जाते हैं।
इस प्रकार दीपावली के बाद पूरा पर्यावरण साफ हो जाता है। दीपावली अंधकार पर प्रकाश की विजय का त्यौहार है। यह त्यौहार हमें भाई-चारा, प्रेम व हर्ष का संदेश देता है। यह अमावस्या के अंधकार के बीच मनाया जाता है, फिर भी दीपों से सजी माला से दुनिया इस तरह जगमगाने लगती है, मानो पूर्णिमा की रात्रि हो।इस तरह यह त्यौहार हमें बताता है कि यदि सामूहिक प्रयास किया जाए तो अंधकार को मिटाया जा सकता है।
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होली का वैज्ञानिक कारण :-
इसी प्रकार होली भी ऐसे ही समय मे पडती है ज़ब ऋतु गर्मी से सर्दी मे परिवर्तित हो रही होती है उस समय भी कीटाणुओं की वजह से अनेको बीमारिया पैदा होती है होली की रात को हर मोहल्ले मे होलिका दहन किया जाता है जिसमे लकड़ियों पर देशी घी डाला जाता है उससे भी लाखों टन ऑक्सीजन प्रकर्ति को मिलती है होली पर नमकीन पकवान बनाया जाता है क्योंकि इस मौसम मे उस ऋतु मे सर्दी गर्मी की वजह से त्वचा रूखी हो जाती है और पकवान खाने से त्वचा से रुखा पन दूर होता है
ऐसे ही दोस्तों अन्य त्योहारों पर भी जो भोजन बनता है उन पर रिसर्च करें आप पाएंगे की सभी के पीछे एक ना एक वैज्ञानिक कारण है
हमारे पूर्वजों ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, होली का त्योहार बेहद उचित समय पर मनाने की शुरूआत की, हमें अपने पूर्वजों का शुक्रगुजार होना चाहिए। अतः होली के त्योहार की मस्ती के साथ-साथ वैज्ञानिक कारणों से अंजान न रहकर, इसको जानना आवश्यक है। यह त्यौहार साल में ऐसे समय पर आता है, जब मौसम में बदलाव के कारण लोगो में नींद और आलसीपन अधिक पाया जाता है । इसका मुख्य कारण ठंडे मौसम से गर्म मौसम का रुख अख्तियार होना है, जिसके कारण शरीर में कुछ थकान और सुस्ती महसूस करना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, क्योकि शरीर के खून में नसों के ढीलापन आने से खून का प्रवाह हल्का पड़ जाता है और शरीर में सुस्ती आ जाती है और इसको दूर भगाने के लिए ही लोग फाग के इस मौसम में लोगो को न केवल जोर से गाने, बल्कि बोलने से भी थोड़ा जोर पड़ता है और सुस्ती दूर हो जाती है । इस मौसम में संगीत को भी बेहद तेज बजाया जाता है, जिससे भी मानवीय शरीर को नई ऊर्जा प्रदान होती हैं। इसके अतिरिक्त शुद्ध रूप में पलास आदि से तैयार किये गये रंग और अबीर, जब शरीर पर डाला जाता है तो उसका शारीर पर अनोखा व अच्छा प्रभाव होता है।
होली त्योहार में, जब शरीर पर ढाक के फूलों से तैयार किया गया रंगीन पानी, विशुद्ध रूप में अबीर और गुलाल डालते है तो शरीर पर इसका सुकून देने वाला प्रभाव पड़ता है और यह शरीर को ताजगी प्रदान करता है। जीव वैज्ञानिकों का मानना है कि गुलाल या अबीर शरीर की त्वचा को उत्तेजित करते हैं और त्वचा के छिद्रों (पोरों) में समा जाते हैं और शरीर के आभा मंडल को मजबूती प्रदान करने के साथ ही स्वास्थ्य को बेहतर करते हैं और उसकी सुदंरता में निखार लाते हैं।
होली त्योहार मनाने का एक और वैज्ञानिक कारण है जो होलिका दहन की परंपरा से जुड़ा हुआ है। शरद ऋतु की समाप्ति और बसंत ऋतु के आगमन का यह काल पर्यावरण और शरीर में बैक्टीरिया की वृद्धि को बढ़ा देता है लेकिन जब होलिका जलाई जाती है तो उससे करीब 65-75 डिग्री सेंटीग्रैड (150-170 डिग्री फारेनहाइट) तक तापमान बढ़ता है। परम्पपरा के अनुसार जब लोग जलती होलिका की परिक्रमा करते हैं तो होलिका से निकलता ताप शरीर और आसपास के पर्यावरण में मौजूद बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है और इस प्रकार यह शरीर तथा पर्यावरण को भी कीड़े-मकोड़े व बैक्टीरिया रहित कर स्वच्छता प्रदान करता है।
कही-कही होलिका दहन के बाद उन क्षेत्र के लोग, होलिका की बुझी आग अर्थात राख को माथे पर विभूति के तौर पर लगाते हैं और अच्छे स्वास्थ्य के लिए वे चंदन तथा हरी कोंपलों और आम के वृक्ष के बोर को मिलाकर उसका सेवन करते हैं। दक्षिण भारत में होली, अच्छे स्वास्थ्य के प्रोत्साहन के लिए मनाई जाती है। होली के मौके पर लोग अपने घरों की भी साफ-सफाई करने से धूल गर्द, मच्छरों और अन्य कीटाणुओं का सफाया हो जाता है। एक साफ-सुथरा घर आमतौर पर उसमें रहने वालों को सुखद अहसास देने के साथ ही सकारात्मक ऊर्जा भी प्रवाहित करता है।
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मकर संक्रांति का वैज्ञानिक कारण :-
सूर्य को ब्रह्मांड की आत्मा माना जाता है। ब्रह्मांड में सूर्य अनेक है। हमारी धरती के सूर्य के प्रति धन्यवाद देने हेतु संक्रांति का पर्व नियुक्त है। वर्ष में बारह संक्रांतियाँ होती है जिसमें से मकर संक्रांति का ही महत्व अधिक है।
मकर संक्रांति का पर्व पूरे भारत में मनाया जाता है। यह सूर्य आराधना का पर्व है जिसे भारत के प्रांतों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। इसी दिन से सौर नववर्ष की शुरुआत मानी जाती है जबकि सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में गति करने लगता है। इसे सौरमास भी कहा जाता है। इस दिन से सूर्य मकर राशि में गमन करने लगता है इसीलिए इसे मकर संक्रांति कहते हैं।
भारत के अलग-अलग प्रांतों में इस त्योहार को मनाए जाने के ढंग भी अलग हैं, लेकिन इन सभी के पीछे मूल ध्येय सूर्य की आराधना करना है। मकर सक्रांति को पतंग उत्सव, तिल सक्रांति आदि नामों से भी जाना जाता है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने का, तिल-गुड़ खाने का तथा सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व है। इस दिन से दिन धीरे-धीरे बड़ा होने लगता है। यह दिन दान और आराधना के लिए महत्वपूर्ण है। मकर संक्रांति से सभी तरह के रोग और शोक मिटने लगते हैं। माहौल की शुष्कता कम होने लगती
बसंत पंचमी का वैज्ञानिक कारण :-
भारतीय ज्योतिष में प्रकृति में घटने वाली हर घटना को पूर्ण वैज्ञानिक रूप से निरूपित करने की अद्भुत कला है। प्रकृति में प्रत्येक सौंदर्य एवं भोग तथा सृजन के मूल माने जाने वाले भगवान शुक्र देव अपने मित्र के घर की यात्रा के लिए बेचैन होकर इस उद्देश्य से चलना प्रारंभ करते हैं कि उत्तरायण के इस देव काल में वह अपनी उच्च की कक्षा में पहुंच कर संपूर्ण जगत को जीवन जीने की आस व साहस दे सकें।
मूल रूप से शरद ऋतु के ठंड से शीतल हुई पृथ्वी की अग्नि ज्वाला, मनुष्य के अंत:करण की अग्नि एवं सूर्य देव के अग्नि के संतुलन का यह काल होता है। यह मात्र वह समय है (बसंत ऋतु) जहां प्रकृति पूर्ण दो मास तक वातावरण को प्राकृतिक रूप से वातानुकूलित बनाकर संपूर्ण जीवों को जीने का मार्ग प्रदान करती है।
आज के लिए इतना ही धन्यवाद
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त्योहारो और उन पर बनने वाले भोजन मे छिपे है अनेको वैज्ञानिक कारण जानिये | Gyani Guide धर्म-संसार
Reviewed by Gyani Guide
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8:04 PM
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