आज भी जीवित है महाभारत का योद्धा अश्वत्थामा इस शिव मंदिर में रोज़ आता है पुजा करने

आज भी जीवित है महाभारत का योद्धा अश्वत्थामा इस शिव मंदिर में रोज़ आता है पुजा करने 

आज भी जीवित है महाभारत का योद्धा अश्वत्थामा इस शिव मंदिर में रोज़ आता है पुजा करने


महाभारत युद्ध के बाद जीवित बचे 18 योद्धाओं में से एक अश्‍वत्थामा भी थे। अश्वत्थामा को संपूर्ण महाभारत के युद्ध में कोई हरा नहीं सका था। कहते हैं कि वे आज भी अपराजित और अमर हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या वे आज भी जीवित हैं? कुछ लोग भविष्यपुराण का हवाला देकर कहते हैं कि वे कलयुग के अंत में जब कल्कि अवतार होगा तो उनके साथ मिलकर अधर्म के खिलाफ लड़ेंगे।
अश्वत्थामा को दुनिया खत्म होने तक भटकने का शाप देने वाले भगवान श्री कृष्ण थे। यह शाप श्री कृष्ण ने इसलिए दिया क्योंकि इसने पाण्डव पुत्रों की हत्या उस समय की थी जब वह सो रहे थे। इसने ब्रह्माशास्त्र से उत्तरा के गर्भ को भी नष्ट कर दिया था। गर्भ में पल रहे शिशु की हत्या से क्रोधित होकर श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को भयानक शाप दिया। अश्वत्थाम के इस घोर पाप का अनुचित लेकिन एक बड़ा कारण था।
महाभारत के 18वें दिन ब्रह्मास्त्र का प्रयोग : अठारहवें दिन कौरवों के तीन योद्धा शेष बचते हैं- अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा। इसी दिन अश्वत्थामा ने पांडवों के वध की प्रतिज्ञा ली लेकिन उन्हें समझ में नहीं आता कि कैसे पांडवों को मारा जाए। अश्वत्थामा यही सोच रहे थे तभी एक उल्लू द्वारा रात्रि को कौवे पर आक्रमण करने पर उल्लू उन सभी को मार देता है। यह घटना देखकर अश्वत्थामा के मन में भी यही विचार आया और घोर कालरात्रि में कृपाचार्य तथा कृतवर्मा की सहायता से पांडवों के शिविर में पहुंचकर उसने सोते हुए पांडवों के 5 पुत्रों को पांडव समझ कर उनका सिर काट दिया। इस घटना से धृष्टद्युम्र जाग जाता है तो अश्वत्थामा उसका भी वध कर देता है।


अश्वत्थामा के इस कुकर्म की सभी निंदा करते हैं। अपने पुत्रों की हत्या से दुखी द्रौपदी विलाप करने लगती हैं। उनके विलाप को सुनकर अर्जुन ने अश्वत्थामा का सिर काट डालने की प्रतिज्ञा कर ली। अर्जुन की प्रतिज्ञा सुन अश्वत्थामा भाग निकला तब श्री कृष्ण को सारथी बनाकर एवं अपना गाण्डीव-धनुष लेकर अर्जुन ने उसका पीछा किया। अश्वत्थामा को कहीं भी सुरक्षा नहीं मिली तो भय के कारण उसने अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। मजबूरी में अर्जुन को भी ब्रह्मास्त्र चलाना पड़ा। ऋषियों की प्रार्थना पर अर्जुन ने तो अपना अस्त्र वापस ले लिया लेकिन अश्वत्थामा ने अपना ब्रह्मास्त्र अभिमन्यु की विधवा उत्तरा की कोख की ओर मोड़ दिया। कृष्ण अपनी शक्ति से उत्तरा के गर्भ को बचा लेते हैं।


अंत में श्री कृष्ण ने कहा, ‘‘हे अर्जुन! धर्मात्मा, सोए हुए, असावधान, मतवाले, पागल, अज्ञानी, रथहीन, स्त्री तथा बालक को मारना धर्म के अनुसार वर्जित है। इसने धर्म के विरुद्ध आचरण किया है, सोए हुए निरपराध बालकों की हत्या की है। जीवित रहेगा तो पुन: पाप करेगा अत: तत्काल इसका वध करके और इसका कटा हुआ सिर द्रौपदी के सामने रख कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो।’’
श्री कृष्ण के इन वचनों को सुनने के बाद भी अर्जुन को अपने गुरु पुत्र पर दया आ गई और उन्होंने अश्वत्थामा को जीवित ही शिविर में ले जाकर द्रौपदी के समक्ष खड़ा कर दिया। पशु की तरह बंधे हुए गुरु पुत्र को देखकर द्रौपदी ने कहा, ‘‘हे आर्यपुत्र यह गुरु पुत्र है। आपने इनके पिता से इन अपूर्व शस्त्रास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया है। पुत्र के रूप में आचार्य द्रोण ही आपके सम्मुख बंदी रूप में खड़े हैं। इनका वध करने से इनकी माता कृपी मेरी तरह ही कातर होकर पुत्र शोक में विलाप करेगी। पुत्र से विशेष मोह होने के कारण ही वह द्रोणाचार्य के साथ सती नहीं हुई। कृपी की आत्मा निरंतर मुझे कोसेगी। इनके वध करने से मेरे मृत पुत्र लौटकर तो नहीं आ सकते अत: आप इन्हें मुक्त कर दीजिए।’’
द्रौपदी के इन धर्मयुक्त वचनों को सुनकर सभी ने उनकी प्रशंसा की। इस पर श्री कृष्ण ने कहा, ‘‘हे अर्जुन! शास्त्रों के अनुसार आततायी को दंड न देना पाप है अत: तुम वही करो जो उचित है।’'
उनकी बात को समझ कर अर्जुन ने अपनी तलवार से अश्वत्थामा के सिर के केश काट डाले और उसके मस्तक की मणि निकाल ली। मणि निकल जाने वह श्रीहीन हो गया। बाद में श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को सृष्टि के अंत तक भटकने का शाप दिया। अंत में अर्जुन ने उसे उसी अपमानित अवस्था में शिविर से बाहर निकाल दिया। अश्वत्थामा द्रोणाचार्य के पुत्र थे। द्रोणाचार्य ने शिव को अपनी तपस्या से प्रसन्न करके उन्हीं के अंश से अश्वत्थामा नामक पुत्र को प्राप्त किया। अश्वत्थामा के पास शिवजी द्वारा दी गई कई शक्तियां थीं। वह स्वयं शिव का अंश थे। जन्म से ही अश्वत्थामा के मस्तक पर एक अमूल्य मणि विद्यमान थी जो उसे दैत्य, दानव, शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग आदि से निर्भय रखती थी। इस मणि के कारण ही उस पर किसी भी अस्त्र-शस्त्र का असर नहीं हो पाता था।

कहा जाता है की असीरगढ के किले में स्थित शिव मंदिर ने आज भी पुजा करता है अश्वत्थामा 

असीरगढ़ किले से जुड़ी कई रहस्यमयी और रोचक बाते सुनने को मिलती हैं, जिनमें सबसे महत्वपुर्ण और विख्यात है अश्वत्थामा की कहानी। दुनिया का सबसे बड़ा रहस्य अपने में समेटे असीरगढ़ किला बुरहानपुर से लगभग 20 किमी की दूरी पर उत्तर दिशा में सतपुड़ा पहाडियों के शिखर पर समुद्र सतह से 750 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। बुरहानपुर खंडवा से लगभग 80 किमी दूर है कहा जाता है कि महाभारत के कई प्रमुख चरित्रों में से एक अश्वत्थामा का वजूद आज भी है। अगर यह पढ़कर आप हैरान हो रहे हैं, तो हम आपको बता दें कि ये सच है
मध्यप्रदेश में महू से करीब 12 किलोमीटर दूर स्थित विंध्यांचल की पहाड़ियों पर खोदरा महादेव विराजमान हैं। माना जाता है कि यह अश्वत्थामा की तपस्थली है। ऐसी मान्यता है कि आज भी अश्वत्थामा यहां आते हैं
महाभारत युद्घ समाप्त होने के बाद कौरवों की ओर से सिर्फ तीन योद्घा बचे थे कृप, कृतवर्मा और अश्वत्थामा। कृप  हस्तिनापुर चले आए और कृतवर्मा द्वारिका। शाप से दुःखी अश्वत्थामा को व्यास मुनि ने शरण दिया। मध्यप्रदेश, उड़ीसा और उत्तराखंड के वनों में आज भी अश्वत्थामा को देखे जाने की चर्चाएं आती रहती है।
मध्यप्रदेश के असीरगढ़ के किले में एक प्राचीन शिव मंदिर है। भगवान शिव के इस मंदिर में हर दिन कौन गुलाल और फूल अर्पित करके चला जाता है यह एक रहस्य है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर तक आने का एक गुप्त रास्ता है जिससे अश्वत्थामा आकर यहां शिव जी की पूजा कर जाता है।

Tags

ashwathama in hindi
ashwathama ka yudh
ashwathama meaning
ashwathama kaun tha
ashwathama brahmastra
ashwathama ki kahani
ashwathama death
ashwathama movie
ashwathama arjun ki ladai
ashwathama age
ashwathama amar hai
ashwathama abhi zinda hai
ashwathama avatar
ashwathama aur bheem ki ladai
ashwathama abhi bhi jinda hai
ashwathama aur pandav ki ladai
ashwathama alive proof images

आज भी जीवित है महाभारत का योद्धा अश्वत्थामा इस शिव मंदिर में रोज़ आता है पुजा करने आज भी जीवित है महाभारत का योद्धा अश्वत्थामा इस शिव मंदिर में रोज़ आता है पुजा करने Reviewed by Gyani Guide on 4:41 PM Rating: 5

No comments:

Stay Connected

Powered by Blogger.